अप्रतिम योद्धा: तीन युद्धों के एक भारतीय जनरल
आज हम आपको ऐसे फौजी के बारे में बता रहे हैं जिन्हें भारत का सबसे निर्भीक जनरल माना जाता है। जनरल सगत एकमात्र सैन्य अधिकारी है जिन्होंने तीन युद्ध में जीत हासिल की। उनके नेतृत्व में गोवा को पुतर्गाल से मुक्त कराया गया। वहीं वर्ष 1967 में चीनी सेना की भी घेराबंदी की। इसके बाद वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को दरकिनार कर जनरल सगत ढाका पर जा चढ़े। इसकी बदौलत पाकिस्तानी सेना को हथियार डालने को मजबूर होना पड़ा।
आजादी के बाद सन 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्रवाई हुई और पुर्तगाली शासन के अंत के बाद गोवा भारतीय गणतंत्र का अंग बना।
गोवा मुक्ति के लिए दिसम्बर 1961 में भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय में 50 पैरा को सहयोगी की भूमिका में चुना गया। लेकिन उन्होंने इससे कहीं आगे बढ़ इतनी तेजी से गोवा को मुक्त कराया कि सभी दंग रह गए।18 दिसम्बर को 50 पैरा को गोवा में उतारा गया।
19 दिसम्बर को उनकी बटालियन गोवा के निकट पहुंच गई। पणजी के बाहर पूरी रात डेरा जमा रखने के बाद उनके जवानों ने तैरकर नदी को पार कर शहर में प्रवेश किया। उन्होंने ही पुर्तगालियों को आत्मसमर्पण करने को मजबूर किया। पुर्तगाल के सैनिकों सहित 3306 लोगों ने आत्मसमर्पण किया। इसके साथ ही गोवा पर 451 साल से चला आ रहा पुर्तगाल का शासन समाप्त हुआ और गोवा भारत का हिस्सा बन गया।
वर्ष 1965 में सगत सिंह को मेजर जनरल के रूप में नियुक्ति देकर 17 माउंटेन डिविजन की कमांड देकर चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया था।
पाकिस्तान से युद्ध में उलझे भारत को देख चीन ने फायदा उठाने की सोच कर नाथू ला और जेलेप ला में लाउड स्पीकर लगाकर भारतीय सेना को चेतावनी दी की ये चीन का क्षेत्र है इसे खाली करो।
भारतीय सेना हेड क्वार्टर ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए जेलेप ला और नाथू ला से भारतीय सेना को पीछे हटने का आदेश दिया।
जेलेप ला से सेना पीछे हट गई लेकिन नाथुला दर्रे पर तैनात भारतीय सेना के सेना नायक सगत सिंह ने अविचलित होकर अपना काम जारी रखा, और मुख्यालय के आदेश को नहीं मानते हुए चीनी सैनिको को उन्ही की भाषा में जवाब दिया और सीमा निर्धारण कर तार-बाड़ का काम जारी रखा जिसे रोकने की चीन ने पूरी कोशिश की।
बात अगर सिक्किम के पास नाथू ला में हुए भारत-चीन युद्ध 1967 की करें तो उसमें भारत ने चीन को धूल चटा दी थी। उस जंग में चीन के 300 से अधिक सैनिक मारे गए थे जबकि भारत को सिर्फ़ 65 सैनिकों का नुक़सान उठाना पड़ा था।
भारत-चीन युद्ध 1962 के पांच साल बाद 1967 में हुई जंग में भारत जीता था और जीत के हीरो रहे थे लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़। भारतीय सेना का वो बहादुर अफसर जिसने प्रधानमंत्री की बिना अनुमति के तोपों का मुंह खोल दिया और गोले बरसाकर चीन के तीन सौ से ज्यादा सैनिक ढेर कर दिए।
इन्हीं सगत सिंह द्वारा नाथू ला को ख़ाली न करने का निर्णय आज भी देश के काम आ रहा है और नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है जबकि जेलेप ला चीन के कब्जे में चला गया।
वर्ष 1967 में सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशा ने मिजोरम में अलगाववादियों से निपटने की जिम्मेदारी दी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और बांग्लादेश मुक्ति में ढाका पर कब्जा करने वाले सेनानायक यही सगत सिंह राठौर ही थे। सैन्य इतिहासकार मेजर चंद्रकांत सिंह बांग्लादेश की आजादी का पूरा श्रेय सगत सिंह को देते हैं।
जनरल सगत वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अगरतला सेक्टर की तरफ से हमला बोला और अपनी सेना को लेकर आगे बढ़ते रहे। जनरल अरोड़ा ने उन्हें मेघना नदी पार नहीं करने का आदेश दिया। लेकिन हेलिकॉप्टरों की मदद से चार किलोमीटर चौड़ी मेघना नदी के पार उन्होंने पूरी ब्रिगेड उतार दी और आगे बढ़ गए।
जनरल सगत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ढाका को घेर लिया और जनरल नियाजी को आत्मसमर्पण का संदेश भेजा। इसके बाद 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण और बांग्लादेश का उदय अपने आप में इतिहास बन गया।
तो यह है पुर्तगाल, चीन और पाकिस्तान को परास्त करनेवाले एकमात्र योद्धा की कहानी जिनके बारे में कोई नहीं जानता। सगत सिंह ने सेना के मन से चीनियों का भय निकाला। सगत सिंह को तो हार के भय से नाथुला में लड़ने की आज्ञा भी नहीं दी गयी, लेकिन भारत माता की आन और मान-सम्मान के लिए इस शेर नें न सिर्फ युद्ध लड़ा बल्कि विजय भी प्राप्त की।
सौजन्य से इतिहासनामा