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राजनीति

मूल निवासियों की पहचान को बनाए रखने को सीएम धामी का मास्टर स्ट्रोक

देहरादून। उत्तराखंड राज्य में 23 साल बाद एक बार फिर मूल निवास का मुद्दा जोरों से उठा है। इस मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने मूल निवास प्रमाण पत्र को न मानने वाले अधिकारियों के फरमान पर सख्त कदम उठाते हुए नई व्यवस्था जारी की है।
अब ऐसे मूल निवासी जिनके मूल निवास प्रमाण पत्र बने हुए हैं उन्हें स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाने की कोई जरूरत नहीं होगी उनके पुराने मूल निवास प्रमाण पत्र ही मान्य होंगे। इससे उनके मूल निवास प्रमाण पत्र की पहचान बनी रहेगी। मूल निवासियों की पहचान को बचाए रखने और मूल निवास प्रमाण पत्र के महत्व को बनाए रखने को सीएम धामी की ओर से बड़ा फैसला लिया गया है। इस फैसले के तहत सचिव विनोद कुमार सुमन ने बुधवार को स्पष्ट आदेश जारी किए हैं कि अब मूल निवास प्रमाण पत्र धारक से कोई भी विभाग स्थाई निवास प्रमाण पत्र की मांग नहीं करेगा। सरकारी नौकरियों, सरकार की योजनाओं में मूल निवास प्रमाण पत्र ही मान्य होंगे।
सरकारी विभागों में मूल निवास प्रमाण पत्र की इस अनदेखी का स्वयं कम पुष्कर सिंह धामी ने संज्ञान लिया था। सीएम की सख्ती के बाद तत्काल ही सचिव सामान्य प्रशासन की ओर से आदेश जारी किए गए हैं।
मुख्यमंत्री के इस फैसले ने मूल निवासियों को वह पहचान दी है जिसके लिए वे 23 साल से इंतजार कर रहे थे। नवंबर 2001 को एक आदेश ने राज्य में मूल निवास प्रमाण पत्र बनाने बंद कर दिए थे। बाद के वर्षों में विभागों ने मूल निवास प्रमाण पत्र की अनदेखी शुरू कर दी। नौकरियों और सरकारी योजनाओं में पात्रता में मूल निवास प्रमाण पत्र का प्रावधान ही नहीं किया जाता था सिर्फ स्थाई निवास प्रमाण पत्र का जिक्र किया जाता था। इसी आधार पर अफसर मूल निवास प्रमाण पत्र के स्थान पर स्थाई निवास प्रमाण पत्र की मांग करते रहे। इन तमाम किंतु परंतु पर बुधवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पूरी तरह विराम लगा दिया। ऐसा करके सरकार ने मूल निवासियों की पहचान को बनाए रखने को मास्टर स्ट्रोक चल दिया है राज्य के मूल निवासियों को उनकी पहचान सुनिश्चित कर दी है।