उत्तरकाशी टनल में अटकी 41 जिंदगानी, परिणाम बस कहानी
उत्तरकाशी टनल में अटकी 41 जिंदगानी, परिणाम बस कहानी
देहरादून। उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में पिछले 17 दिनों से 41 जिंदगियों को बचाने की जद्दोजहद चल रही है। बता दें कि उत्तराखंड की केंद्र पोषित महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना में अनेकों टनल बनाई जानी थी जिनमें से राष्ट्रीय राजमार्ग 134 पर 1383 करोड़ की लागत से बनने वाली सड़क में उत्तरकाशी के सिल्क्यारा बैंड से बुराड़ी पास में 25.6 किलोमीटर मार्ग को कम करके 4.531 किमी तक सीमित रखने के लिए सुरंग निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में था कि दीवाली से ठीक पहले टनल के ऊपर से पहाड़ी का एक हिस्सा धंस गया और सिल्क्यारा बैंड से लगभग 200 मीटर पर टनल का मार्ग अवरुद्ध होने से 41 मजदूर टनल के अंदर फंसे हुए हैं। दुर्घटना के एक सप्ताह बाद फंसे हुए श्रमिकों को बामुश्किल तरल खाद्य व रोशनी पहुंचाई जा सकी। दूसरी तरफ केंद्र व राज्य सरकारों का भरसक प्रयास है कि टनल में फंसे हुए श्रमिकों को जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर निकाला जाए इसके लिए होरिजेंटल व ड्रिल के साथ साथ मैन्युअल ड्रिल के माध्यम से भी कार्य किया जा रहा है किंतु समस्याओं का अंबार थमने का नाम ही नहीं ले रहा। लगभग 47 मीटर खुदाई के बाद होरिजेंटल ड्रिल के मार्ग के अंतिम पड़ाव के लगभग 8-10 मीटर भाग में पक्के बोल्डर व ठोस लोहे की उपस्थिति बाधा बन रही है जिसमें कई बार अमेरिकन आगर मशीन के विफल होने के बाद अब देशी विधि से मजदूरों द्वारा फावड़े गैंती जैसे उपकरणों से खुदाई शुरु की गई है तो वहीं टनल के ऊपरी हिस्से की पहाड़ी से वर्टिकल ड्रिल की जा रही है जो सम्भावित 85 मीटर की ड्रिल में से 30 मीटर पूरी की जा चुकी है। सारा दारोमदार और ड्रिल में लगने वाला समय मार्ग के बोल्डरों, लौह व अन्य ठोस पदार्थों पर निर्भर है जिससे ड्रिल कार्य में पहले की भांती बड़ी रुकावटें भी आ सकती हैं।
टनल में फंसी 41 जिंदगियों को बचाने की जद्दोजहद के बीच देश प्रदेश के सभी लोग इनकी कुशलता के लिए दुआ प्रार्थना में लगे हैं तो स्थानीय लोगों ने टनल द्वार के समीप बोखनाग देवता का मंदिर स्थापित कर पूजा अर्चना शुरु कर दी है। उनका मानना है कि बोखनाग देवता वहां के क्षेत्रपाल हैं और उनकी अनुमति के बिना उस क्षेत्र में कोई कार्य नहीं हो सकता। हालांकि स्थानीय लोगों के अनुसार बोखनाग देवता ने टनल में फंसे लोगों की तीन दिन में सुरक्षित निकासी का आश्वासन दिया है तो भी देखना है कि टनल में फंसे श्रमिकों के जीवन को बचाने की जंग सरकारों व विशेषज्ञों के प्रयासों और और आस्था के सैलाब के बीच कितनी लम्बी खिंचती है।