पहाड़ में उद्योगपति ही फुटकर विक्रेता फेरी वाले
पहाड़ में उद्योगपति ही फुटकर विक्रेता फेरी वाले
एक तरफ सरकार सत्ता के केंद्रीयकरण के साथ साथ व्यापार का केंद्रीयकरण कर रही है तो वही दूसरी और उद्योगपतियों से ही फुटकर कार्य लेने की नीति बनी हुई है। ऐसा ही एक प्रकरण बानगी है सरकार की ऐसी नीति का। देहरादून में विद्युत वाहनों को चार्जिंग के लिए चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जाने का प्रस्ताव आया। जिला प्रशासन के द्वारा औपचारिक रूप से टेंडर निकाले गए जिसके लिए जिला प्रशासन ने कुछ नामी गिरामी उद्योगपतियों को आमंत्रित कर स्टेकहोल्डर्स से परामर्श की औपचारिकता पूरी कर ली और संभवत: यह भी निश्चित कर लिया की टेंडर किसे दिया जाना है इसके उपरांत प्रीबिड मीट की आवश्यकता समझी गई और बिना प्रचार प्रसार के प्री बिड का आयोजन किया गया जिसमें पूर्व में बुलाए गए उद्योगपति शामिल नहीं हुए मात्र एक दो विज्ञापन एजेंसी ही विज्ञापन हेतु स्थान प्राप्त करने के लालच में प्री बिड में प्रतिभाग किया। ऐसे में इस प्रक्रिया का उद्देश्य स्वत: स्पष्ट हो जाता है।
उक्त टेंडर में एक वर्ष का अनुभव और एक करोड़ का टर्नओवर की मांग के साथ-साथ वेंडर के पास चार्जिंग यूनिट की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का होना अनिवार्य योग्यता रखी गई है जो जो किसी भी युवा अथवा स्टार्टअप के पास होना असंभव प्रतीत होता है भले ही वह कितना भी प्रतिभा शाली क्यों ना हो।
यहां प्रश्न यह उठता है की वेंडिंग कार्य के लिए युवाओं को स्थान व अवसर देने के स्थान पर उद्योगपतियों को चयनित करना बढ़ते बेरोजगार और युवाओं की समस्या को देखते हुए कितना प्रदेश हित में है और कितना युवाओं के हित में है।
देहरादून शहर में प्रस्तावित दस ईवी स्टेशनस में यदि बेरोजगार युवाओं को स्टार्टअप के रूप में अवसर दिया जाता तो कम से कम 20 से लेकर 60 युवाओं को रोजगार मिल सकता था और इतने ही परिवारों को आर्थिक निर्भरता। लेकिन उद्योगपतियों के मुंह लगे अधिकारियों को अपने लालच और स्वेच्छाचारी स्वभाव से कहीं भी फुर्सत दिखाई नहीं देती ऐसे में देवभूमि कहलाने वाले पहाड़ी राज्य में युवाओं को बेरोजगारी से कैसे उबरा जाएगा यह स्वयं बेरोजगार युवाओं को ही निर्धारित करना पड़ेगा।