“लाडली बहना” ने रखा ‘मामा’ का मान
“लाडली बहना” ने रखा ‘मामा’ का मान
हालिया विधान सभा चुनावों में चुनावी पंडित कांग्रेस को 4-1 से आगे बता रहे थे तो वहीं एक्जिट पोल भी कांग्रेस को 2-2 से आगे बताने के साथ ही एमपी और राजस्थान में कांटे की टक्कर बता रहे थे कुछ एक का तो मानना था कि एमपी के परिणाम ‘मामा’ के विरुद्ध चौंकाने वाले भी हो सकते हैं लेकिन यह शिवराजसिंह ‘मामा’ ही थे जिन्हें अपनी योजनाओं ‘मुफ्त की रेवड़ी’, पर पूरा भरोसा था। हो भी क्यूं न? आधी आबादी वह भी आर्थिक रुप से निर्बल या पिछड़ी हुई हो और उसे एक दो नहीं, कमोबेश हर आयु वर्ग को, किसी न किसी बहाने चाहे वह रसोई गैस हो या फिर लड़कियों की शादी या पढ़ाई के अलावा पेंशन जैसी बात हो या फिर यूंही हर महीने नगद खैरात मिलना हो तो ऐसे में कौन नहीं बौराएगा, हुआ भी वही, मध्यप्रदेश में इस बार महिलाओं द्वारा खुलकर या फिर यूं कहें कि बम्पर मतदान किया गया
बताया जाता है कि महिलाओं द्वारा 10% अधिक मतदान किया गया इसके बावजूद भी भाजपा को एमपी में लगभग एक प्रतिशत मत अधिक मिले जो सीटों की बड़ी संख्या को इधर से उधर करने में कामयाब रहे। उधर ‘सपा’, ‘बसपा’ व ‘आप’ ने भी कांग्रेस के इरादों पर पानी फेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। बताया तो यह भी जा रहा है कि 35 से अधिक सीटों में हार जीत का अंतर मामूली रहा, हालांकि विस्तृत ब्यौरा आने पर ही सही स्थिति का पता चल सकेगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि भारत के राजनीतिक माहौल में पांच साल कुछ करो न करो आधी आबादी या फिर यूं कहो बड़े तबके को मलाई के इतने दोने दिखाए जाएं कि वह सपने में खो जाए फिर विकास किस खेत की मूली है जो मुफ्त की रेवड़ियां बांटने वाले के चुनावी अभियान में रोड़ा अटकाए! यही हुआ भी शिवराज सिंह जो एक समय अपनी ही पार्टी द्वारा हाशिए पर कर दिये दिखाई दे रहे थे उनके द्वारा महिलाओं के लाभ के लिए चलाई गई अनेक योजनाओं खासकर ‘लाडली बहना’ और उनकी अपनी लगातार रैलियों रोड शो ने उन्हें जीत की देहरी पार करा दी।
इसी प्रकार राजस्थान में केंद्रीय योजनाओं और बेहतर ध्रुवीकरण ने अशोक गहलोत की दाल न गलने दी। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की नब्ज तो प्रधानमंत्री जी ने बहुत पहले ही दबा ली थी।
बहरहाल, हालिया चुनावों के नतीजों ने मतदाताओं की सोच और समझ पर ‘फ्री बीज़’ अर्थात मुफ्त की रेवड़ियां हावी रही और भविष्य का दर्पण भी।