पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी और ग्लोबल इंवेस्टमेंट समिट
पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी और ग्लोबल इंवेस्टमेंट समिट
*प्रदेश के विकास से प्रदेशवासियों का जीवन सुखी हो सकता है लेकिन उसे सम्पन्न बनाने के लिए हर हाथ को काम की आवश्यकता होती है।
देहरादून। उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में केंद्रीय संस्थान वन अनुसंधान संस्थान (एफ आर आई) में 8 व 9 दिसम्बर को आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर समिट ने देश विदेश के निवेशकों का ध्यान उत्तराखंड की ओर खींचा। निसंदेह भौगोलिक परिस्थितियों और जैव विविधता के चलते उत्तराखंड दुनिया के अहम स्थानों में आता है। बात अगर ग्रीन या फिर कार्बन प्रोटेक्शन की हो तो कहा जा सकता है कि उत्तराखंड का स्थान महत्वपूर्ण हो जाता है इसका 38000 वर्ग किमी.( 26547 व.किमी. आरक्षित वन क्षेत्र के साथ 9885 वर्ग किमी. संरक्षित वन क्षेत्र और 1568 वर्ग किमी.अवर्गीकृत वन क्षेत्र) यहां के कुल क्षेत्रफल 53483 वर्ग किमी. को सौम्य और सुरमय बनाता है। इस प्रकार प्रदेश का 71% से अधिक क्षेत्रफल वन आच्छादित है। इसकी भागीरथी, अलकनंदा, काली नदी, धौली गंगा, गौरी गंगा, काली गंगा, लधिया नदी, सरयू नदी, शारदा या श्याम नदी, व ऋषि गंंगा, राम गंगा, हनुमान गाढ, कृष्ण गाढ, कमल गाढ, भद्री गाढ, टौंस नदी, खुतनुगाढ़, बरनी गाढ़ के रुप में फैलती अटखेलियां करती यमुना नदी ,अलकनंदा, सरस्वती, कोसी नदी, गोला नदी, नंधौर नदी, जैसी बड़ी नदियों के अतिरिक्त पहाड़ों से निकलने वाले असंख्य झरनों को समेटकर चलने वाली अनेकों स्थानीय नदियां प्रदेश के हजारों वर्ग किमी. के बेसिन को सिंचित करती और प्रदेश को हरा भरा ही नहीं रखती बल्कि इसे उपजाऊ बनाने के साथ साथ यहां के मौसम को भी बारहों महीने खुशगवार बनाए रखती हैं।
पर्यटन, तीर्थाटन और एडवेंचर स्पोर्ट प्रदेश की आर्थिकी का बड़ा संबल है। चारधाम, वैली आफ फ्लावर्स, औली, हरिद्वार कुंभ क्षेत्र से लेकर नैनिताल, अल्मोड़ा, कौसानी चोपता, रानीखेत, अनेकों बुग्यालों सहित जंगल सफारी का विस्तृत क्षेत्र सैलानियों सिनेमेटोग्राफर्स को बेइंतहा आकर्षित करता है पर्वतारोहण, वाटर स्पोर्ट, स्नो राफ्टिंग जैसे अनेकों एडवेंचर प्रदेश ही नहीं देश को भी ख्याति देने के साथ साथ राजस्व व विदेशी मुद्रा में बड़ा योगदान करते हैं।
सम्भव है उत्तराखंड सरकार द्वारा हालिया आयोजित निवेश महाकुंभ में जैसा कि दावा किया जा रहा है साढ़े तीन लाख करोड़ या फिर उससे भी ज्यादा का निवेश हो तथा प्रदेश की जीडीपी तीन करोड़ से बढकर छ: करोड़ हो जाए और भले ही दस-बीस हजार युवाओं को बाबूगिरी या मजदूरी जैसा काम मिल जाए। लेकिन इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि जब तक घर के बच्चे-युवा सुखी न हों घर के बड़ों व बुजुर्गों को भी चैन नही मिलता। राज्य का नेतृत्व भी घर के बड़े-बुजुर्गों या अभिभावकों के रुप में होता है फिर यह उसका दायित्व हो जाता है कि प्रदेश के प्रत्येक युवा को न केवल हुनरमंद बनाए बल्कि उसे उसकी योग्यता व स्किल के अनुरुप रोजगार भी उपलब्ध कराए।
प्रदेश के विकास से प्रदेशवासियों का जीवन सुखी हो सकता है लेकिन उसे सम्पन्न बनाने के लिए हर हाथ को काम की आवश्यकता होती है। विचारणीय पहलू यह है कि प्राकृतिक संपदा और युवा व शिक्षित जनसंख्या से भरपूर इस प्रदेश की लगभग 27% जनसंख्या नौकरी या रोजगार के अभाव में बेरोजगार अथवा बड़े शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर है। ऐसे में प्रदेश को उद्योगपतियों का राज्य बनाकर भले ही जीडीपी दस गुना हो जाए लेकिन सरकारी नौकरियों कै अभाव में युवाओं को हुनर और उद्यम के द्वार तक ले जाया जाए।