उत्तराखंड राज्य को प्रत्यक्ष रूप में विशिष्ट हिमालयी राज्य का दर्जा घोषित किया जाय
प्रदीप टम्टा
माननीय प्रधानमंत्री जी उत्तराखंड में आपका हार्दिक स्वागत है। देश के प्रधानमंत्री का प्रदेश में आना प्रदेशवासियों के लिए सम्मान के साथ समग्र विकास की नई दिशाओं के द्वार खुलना है। उस पर यह प्रचारित है कि उत्तराखंड से आपको विशेष लगाव है।
परन्तु, मैं यह भी मानता हूं कि पूर्व में आप जब भी आप उत्तराखंड आयें हैं, तो आपने अपने को एक भक्त और पार्टी प्रवक्ता के रूप में उद्घाटित किया है। भक्त के लिए भावना और प्रवक्ता के लिए अपनी पार्टी के हित ही सर्वोच्च हैं।
आपके 4 दिसम्बर के दौरे से इस तथ्य की पुष्टि स्वतः हो रही है।
प्रदेश की अस्थाई राजधानी से आपके द्वारा उन्ही योजनाओं के शुभारंभ को प्रचारित किया जा रहा है, जो पहले से ही गतिमान हैं। इसमें नया कुछ नहीं है। बस, पुराने को नया दिखाने की भाजपा सरकार की प्रचलित नीति और नियति का जोर और शोर है।
लगता है, आपका इसके बाद कुमाऊं की ओर तुरंत दौरा होगा। कुमाऊं के हिस्से की तथाकथित विकास योजनाओं की घोषणा शायद उस अवसर पर आप करेंगे।
प्रदेश की दीर्घकालीन और सतत् विकास योजनाओं को चुनावी समीकरण से देखना, आपको नहीं लगता कि गलत परम्परा है।
अच्छा होता कि, ऑलवेदर रोड़ से होने वाले फायदे के जो सपने गढ़वाल क्षेत्र को दिखाई जा रहे हैं, उसके कुछ छींटे कुमाऊं के तरफ भी होते। सीमावर्ती संवेदनशीलता कुमाऊं की ओर भी भरपूर है। साथ ही, इसका लाभ गढ़वाल-कुमाऊं के बीच सुगम यातायात को बढ़ाने में सहायक होता। यह प्रदेश में पर्यटन-तीर्थाटन और उद्यम विकास की दृष्टि से सर्वोत्तम प्रयास सिद्ध हो सकते थे।
यही हाल, नमामी गंगा परियोजना के संदर्भ में भी है। गंगा नदी अलकनंदा और भागीरथी के मिलन का ही नाम नहीं है, वरन उसके जीवंत अस्तित्व में गढ़वाल – कुमाऊं में प्रवाहित सभी नदियां और गाड़-गधेरों का भी मौलिक और महत्वपूर्ण योगदान है। ये सभी जल-प्रवाह निर्धारित स्थलों पर गंगा में ही तो मिलते हैं।
अतः गंगा की संपूर्ण स्वच्छता के लिए उत्तराखंड की हर नदी और गाड़-गधेरों को भी स्वच्छ करना आवश्यक है। खेदजनक है कि, नमामी गंगा योजना में उत्तराखंड के इस विराट और एक-दूसरे के पूरक जल-प्रवाह तंत्र की ओर ध्यान नहीं दिया गया है।
प्रधानमंत्री जी, यह सभी जानते हैं कि उत्तराखंड राज्य का 86 प्रतिशत हिस्सा पर्वतीय ( हिमालयी ) और 14 प्रतिशत मैदानी है। अतः उत्तराखंड स्वतः ही हिमालयी राज्यों को मिलने वाली विशेष सुविधाओं का हकदार है।
परन्तु, वर्ष-2014 से जबसे केन्द्र में आपकी सरकार आयी है। इस राज्य को विशेष रियायतों से धीरे-धीरे वंचित होना पड़ रहा है। मायने यह हैं कि, उत्तराखंड को पूर्व में मिलने वाली केन्द्रीय साहयता का प्रतिशत निरंतर कम हो रहा है।
आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि, जब यह राज्य उत्तर-प्रदेश का भाग था तो वर्ष-1974 में संपूर्ण अधिकार सम्पन्न प्रदेश पर्वतीय विकास विभाग का गठन तत्कालीन कांग्रेस सरकार की दूरदर्शी नीति के तहत किया गया था। और, यह प्राविधान किया गया था कि इस पर्वतीय भाग में संचालित योजनाओं में केंद्र सरकार का योगदान 90 प्रतिशत और राज्य सरकार का योगदान 10 प्रतिशत होगा। तब, कुछ महत्वपूर्ण विकास योजनायें शत-प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा पोषित होती थी।
नये उत्तराखंड राज्य में प्रथम निर्वाचित काग्रेंस सरकार के अथक प्रयासों से उत्तराखंड राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देकर एक नये विकास युग का सूत्रपात किया गया था। इसका लाभ वर्ष-2013 तक उत्तराखंड को मिला। लेकिन, वर्ष- 2014 में आपके दिशा-निर्देशों के अनुरूप देश और राज्योें के ‘योजना आयोग’ को ‘नीति आयोग’ में बदलने से उत्पन्न दुष्परिणामों की गाज़ उत्तराखंड पर भी पड़ी।
वर्ष-2014 से पहले उत्तराखंड राज्य, भारत सरकार के ‘योजना आयोग’ के डाक्यूमेंट में विशेष हिमालयी राज्य दर्ज था। लेकिन, ‘नीति आयोग’ बनने के बाद उत्तराखंड को ‘उत्तर-पूर्वी एवं हिमालयी राज्य’ की श्रेणी में शामिल कर दिया गया। इसमें चालाकी से ‘नीति आयोग’ द्वारा ‘विशेष’ शब्द को हटा दिया गया।
‘नीति आयोग’ द्वारा उत्तराखंड के लिए ‘विशेष’ शब्द का हटाना, उत्तराखंड राज्य के भावी विकास की प्राथमिकता, पहचान, पारिस्थिकीय और सामरिक संवेदनशीलता को नज़र अंदाज करना है।
अतः, प्रत्यक्ष और तकनीकी रूप में अब उत्तराखंड ‘विशेष’ हिमालयी राज्य में शामिल नहीं है। जिसके कारण, उत्तराखंड को उत्तर-पूर्व राज्यों की भांति विशेष राज्यों की दी जाने ब्लाक ग्रांट (एकमुश्त वित्तीय साहयता) का प्राविधान नहीं है।
इस कारण, देश के अन्य सामान्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में केन्द्र की योजनायें प्रचलन में हैं। केंद्र और राज्य का योगदान अब अधिकांश योजनाओं में 90 : 10 के अनुपात के बजाय 80 : 20 और 60 : 40 का होता जा रहा है। और, यह सब सोची – समझी रणनीति का हिस्सा है।
दुखःद यह है कि, उत्तराखंड राज्य की भाजपा सरकार इसको समझ कर भी नासमझ बनी हुई है।
माननीय प्रधानमंत्री जी आपसे पुनः विनम्र निवेदन है कि, उत्तराखंड हिमालयी राज्य की भौगोलिक विशिष्टता और पारिस्थितिकीय – सामरिक संवेदनशीलता के अनुरूप इसे पूर्व की तरह प्रत्यक्ष रूप में विशिष्ट हिमालयी राज्य का दर्जा घोषित किया जाय।
यह भी सुझाव है कि, ऑलवेदर रोड़ और नमामी गंगा परियोजनाओं को पूरे प्रदेश के समग्र विकास की दृष्टि से क्रियान्वित किया जाय। जिससे राज्य की दीर्घकालीन योजनाओं में संपूर्ण राज्य की आवश्यकताओं, संसाधनों और संभावनाओं के लिए एक व्यापक और समग्र नीति को अपनाने की परम्परा प्रारंभ की जा सके।