UttarakhandDIPR

अपराधमहिला जगतराष्ट्रीय

जहां जज को चाहिए इच्छा मृत्यु तो आम जनता को कैसे मिलेगा न्याय

जहां जज को चाहिए इच्छा मृत्यु तो आम जनता को कैसे मिलेगा न्याय
देहरादून अ.उ। उत्तर प्रदेश के बांदा की एक दुखद और हिकरात से भरी एक घटना सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि जनपद बांदा की एक महिला सिविल जज बेहद मानसिक व दैहिक उत्पीडन का जीवन जी रही है। महिला जज अर्पिता साहू ने सुप्रीम कोर्ट से इच्छा मृत्यु की गुहार लगाईं है।
अर्पिता का सपना था कि वह जज बनकर लोगों को न्याय दिलाएगी लेकिन उसकी अपनी जिंदगी में एक सम्मानित पद पर रहते हुए उसे स्वयं को न्याय के लिए भटकना पड़ रहा है। मुख्य नयायाधीश को संबोधित पत्र में उसने लिखा मैं बहुत उत्साह के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई थी सोचा था कि इससे लोगों को न्याय मिलेगा मुझे क्या पता था कि न्याय व सुरक्षा के लिए मुझे ही भिखारी बना दिया जाएगा उसने लिखा कि वह बहुत निराश मन से यह पत्र लिख रही है अर्पिता का आरोप है कि बाराबंकी में तैनाती के दौरान उसे शरीरिक और मानसिक उत्पीड़न से गुजरना पड़ा जिला जज बांदा पर उसका शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करने का आरोप है उन्होंने आरोप लगाया कि रात में भी उन्हें जिला जज से मिलने के लिए कहा गया। मामले की शिकायत 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में किए जाने पर भी आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। जुलाई 2023 में भी मामले को हाई कोर्ट की अंतरिक शिकायत समिति के समक्ष उठाया गया लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है। उन्होंने प्रस्तावित जांच को दिखावा बताया उन्होंने कहा कि गवाह जिला जज के अधीनस्थ हैं ऐसे में वह गवाह नहीं दे सकेंगे। गवाह अपनी गवाही तभी दे सकेंगे जब वे अभियुक्त के प्रशासनिक नियंत्रण से मुक्त होंगे। जांच लंबित रहने के दौरान अर्पिता साहू ने जिला जज के स्थानांतरण के लिए भी लिखा था लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। जांच जिला जज के अधीन होगी तो उससे किसी प्रकार की अपेक्षा करना व्यर्थ इसलिए उन्होंने इच्छा मृत्यु की अपील की है।
चिंता का विषय यह है कि अगर किसी सिविल जज को भी मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न सहते हुए इच्छा मृत्यु की गुहार लगानी पड़ती है तो फिर कोई सामान्य नागरिक किस प्रकार न्याय की अपेक्षा कर सकता है अब देखना यह है कि महिला अधिकारों की पैरवी सशक्तिकरण का दावा करने वाली सरकार का योगी राज में कितना बल है।